वाराणसी,30 अगस्त । श्रावण माह की पूर्णिमा पर बुधवार को गंगाघाटों पर विप्र समाज ने विधि विधान से वैदिक मंत्रोच्चार के बीच श्रावणी उपाकर्म कर ज्ञात-अज्ञात पापों के शमन के लिए मां गायत्री और भगवान भाष्कर से प्रार्थना किया। विप्र समाज व श्री शास्त्रार्थ महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में शुक्लयजुर्वेद की माध्यंदिनी शाखा से जुड़े ब्राह्मणों की जुटान अहिल्याबाई घाट पर हुई। महाविद्यालय के आचार्य विकास दीक्षित के सानिध्य में प्रात: हिमाद्रि संकल्प के साथ अपामार्ग,कुशा व दुर्वा से स्नान किया गया। तदुपरांत पंचगव्य (गौघृत,गौदुग्ध,गोमय,गोदधि,गौमूत्र) का पान कर उससे स्नान किया गया। इसके बाद ब्राह्मणों ने समूहबद्ध होकर पवित्र गंगा में गोता लगाया। भगवान् भाष्कर व माता गायत्री की उपासना करते हुए तर्पण किया। पंचगंगा घाट से अस्सी के बीच जगह-जगह मंत्रोच्चार गूंजते रहे।
गंगा तट पर प्रायश्चित व तर्पण के पश्चात सभी ब्राह्मणों ने श्री शास्त्रार्थ महाविद्यालय में पहुँचकर देवी अरुंधती सहित सप्त ऋषियों का आवाहन कर इनका पूजन किया। साथ ही पुराने जनेऊ को बदलकर नए यज्ञोपवीत को गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित कर धारण किया। उपाकर्म के तहत ज्ञात-अज्ञात पापों के शमन की कामना भी की गयी। द्विज ब्राह्मणों ने अंतःकरण की शुद्धता के लिए वैदिक मंत्रों का उच्चारण व पाठ किया। कार्यक्रम संयोजक शास्त्रार्थ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पवन कुमार शुक्ल ने बताया कि श्रावणी उपाकर्म की प्राचीन परंपरा की शुरुआत आदिकाल से ऋषि-मुनियों ने नदियों के किनारे पर की थी, जो आज वर्तमान में एक महोत्सव का रूप ले लिया है। उन्होंने बताया कि नवीन यज्ञोपवीत या जनेऊ धारण करना अर्थात आत्म संयम में संस्कारित होना माना जाता है। श्रावणी उपाकर्म का पूरा संस्कार दूसरे जन्म के समान माना जाता है और व्यक्ति द्विज कहलाता है। कहते हैं कि इस पूरे संस्कार को करने से व्यक्ति का दूसरा जन्म माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति है वह इस संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है।
उन्होंने बताया कि चंद्रदोष से मुक्ति के लिए श्रावण पूर्णिमा श्रेष्ठ मानी गई है। श्रावणी उपाकर्म में पाप-निवारण के लिए पातकों, उपपातकों और महापातकों से बचने, परद्रव्य अपहरण न करने, परनिंदा न करने,आहार-विहार का ध्यान रखने, हिंसा न करने, इंद्रियों का संयम करने एवं सदाचरण करने की प्रतिज्ञा ली गयी। पूरे कार्यक्रम में राष्ट्रपति पुरस्कृत पूर्व प्राचार्य डाॅ.गणेश दत्त शास्त्री,डाॅ.आमोद दत्त शास्त्री,डाॅ.शेषनारायण मिश्र,विशाल औढ़ेकर,नितेश चतुर्वेदी,विनय कुमार तिवारी गुल्लू महाराज,गिरीश पाण्डेय, संतोष झा सहित महाविद्यालय के बटुक छात्र शामिल हुए।