लखनऊ, 26 नवंबर । संग्राम सिंह की सेना ने बाबर को भागने पर विवश कर दिया। वह लुटा-पिटा भागकर अयोध्या आ चुका था। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी बाबा श्यामानंद के चेलों फकीर जलालशाह और कजल अब्बास ने बाबर के लिए दुआ की कि जंग में जीत बाबर को ही मिले। फकीरों का आशीर्वाद पाकर बाबर वापस लौट गया और छह लाख की मुगल सेना लेकर अब राणा सांगा पर चढ़ाई कर दिया और विजय प्राप्त किया। मध्यकालीन इतिहास के जानकार बताते हैं कि इस युद्ध में राणा सांगा के कुल 30 हजार सैनिक थे, जबकि बाबर ने छह लाख की सेना बनाई थी। युद्ध का परिणाम घोषित हो चुका था, राणा सांगा हार चुके थे।
युद्ध में बाबर के पांच लाख दस हजार सैनिक मारे गए जबकि राणा सांगा के 29 हजार 400 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। इस विजय के बाद बाबर का उत्साह बढ़ गया और उसका फकीरों की दुआ पर भरोसा भी बढ़ गया। बाबर फिर से अयोध्या आकर फकीरों से मिला। इस बार फकीरों ने शर्त रख दी कि राम की जन्मभूमि पर स्थित मंदिर को तोडक़र नमाज पढऩे के लिए मस्जिद तामीर करवा दो तो तुम्हारे लिए हम दुआ करेंगे कि तुम हिंदुस्तान के बादशाह बन जाओ।
बाबर ने अपने वजीर मीर बांकी ताशकंदी को आदेश दिया कि श्रीराम जन्मस्थान पर स्थित मंदिर को जमींदोज कर वहां मस्जिद तामीर की जाए। यह आदेश देने के बाद बाबर वापस दिल्ली की तरफ कूच कर गया। पं. रामगोपाल शारद अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि मीर बांकी जबरदस्त तासुब्बी थी अर्थात जलने वाला मुसलमान था। बाबर के आदेश के बाद जैसे उसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो। वह इस मौके की ताक में ही था।
फतेहपुर सिकरी से जान बचाकर भागा था मीर बांकी
बाबर के आदेश के बाद मीर बांकी को अपना गुस्सा निकालने का मौका हासिल हो गया। वह दो युद्धों में नुकसान का सामना किया था। अपमानित हुआ था और किसी तरह जान बचाकर फतेहपुर सिकरी के युद्ध से भागा था। इसके बाद राणा सांगा के साथ युद्ध में भले ही विजय मिली हो लेकिन मीर बांकी ने अपने कई रिश्तेदारों को इस जंग में खो दिया था और खुद भी बुरी तरह घायल हुआ था। उसे अपना गुस्सा निकालने का अच्छा अवसर मिल गया था। उसने अपने सैनिकों को तत्काल आदेश दिया कि मंदिर पर धावा बोल दो।
मंदिर पर धावा बोला और योगी-यति संन्यासियों का बलिदान शुरू हुआ
मीर बांकी के आदेश के आदेश मिलने के बाद मुगल सेना ने राम जन्मभूमि मंदिर पर धावा बोल दिया। चारों तरफ हाहाकार मच गया और योगी-संन्यासी, यति, ब्राह्मण, पुजारी और भक्तों के बीच बलिदान देने की होड़ लग गई। अयोध्या की धरती खून से लाल हो उठी। दूसरी तरफ मंदिर के मुख्य पुजारी बाबा श्यामानंद अपने मुस्लिम शिष्यों के षड़यंत्र को समझ नहीं पाए थे। अब उनके पास पछतावा करने के सिवा कुछ नहीं बचा था। बाबा श्यामानंद ने मंदिर के विग्रह को उठाया और उसे अपवित्र होने से बचाने के लिए सरयू नदी की तरफ भागे। किसी तरह वह मुख्य विग्रह बचाकर हिमालय की तरफ चले गए।
हमले के दौरान मंदिर में चार पुजारी और पार्षद मौजूद थे, जो खड़े हो गए और कहा कि हमारी मौत के बाद ही कोई अंदर घुसेगा। फकीर जलालशाह ने आदेश दिया कि इनके सिर धड़ से अलग कर दिए जाएं । मीर बांकी ने तत्काल उनको मौत की नींद सुला दिया। पुजारियों और हिंदू भक्तों की लाशें चील कौओं को खाने के लिए बाहर फेंक दी गई और मुख्य मंदिर को लगातार तोड़ते हुए भूमिसात कर दिया गया।
इतिहासकार और लेखक पंडित रामगोपाल शारद की पुस्तक के मुताबिक कुल 17 दिनों तक मंदिर का विध्वंस चलता रहा। एक तरफ मंदिर को तोड़ा जाता तो दूसरी तरफ उसी के मलबे से मस्जिद का निर्माण भी शुरू किया गया। आततायी जिस मंदिर को तोड़ रहे थे वह अपने समय का विश्व का सर्वश्रेष्ठ मंदिर हुआ करता था। जिसकी पताका आज के मनकापुर से दिखाई पड़ती थी। इधर बाबर की आततायी सेना ने मंदिर तोड़ना शुरू किया, उधर बात जंगल की आग की तरह फैल गई।
हिंदुओं के प्रतिकार और बलिदान का सिलसिला आरंभ हुआ
ब्रिटिश इतिहासवेत्ता कनिंघम लखनऊ गजेटियर 26 वें के पेज तीन पर लिखते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि पर स्थित मंदिर को बाबर के वजीर मीर बांकी द्वारा गिराए जाने के अवसर पर हिंदू शांत नहीं बैठै और अनगिनत बलिदानों का सिलसिला चल पड़ा। यहां तक कि श्रीराम के लिए बलिवेदी पर सर कटवाने की होड़ लग गई लेकिन इस दौरान मुगल सेना को भारी धन-जन की हानि उठानी पड़ी। कई बार तो ऐसा लगा जैसे मुगल सेना के हौसले पस्त हो जाएंगे और वे मंदिर विध्वंस को बीच में ही छोड़कर वापस चले जाएंगे।