लखनऊ, 27 जुलाई । लखनऊ विकास प्राधिकरण के अंतर्गत स्मारक समिति के कर्मचारियों की कांट्रीब्यूटरी प्राविडेंट फंड (सीपीएफ) की एक अरब से ज्यादा की धनराशि अभी वित्त विभाग की फाइलों में फंसी हुई है। स्मारक समिति के कर्मचारियों का मानना है कि सीपीएफ की धनराशि कहीं भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़ जाये।
स्मारक समिति के सदस्य सचिव डा.इन्द्रमणि त्रिपाठी ने बीते छह जून को प्रबन्धक वित्त देवेन्द्र मणि उपाध्याय को एक पत्र लिखकर सीपीएफ की धनराशि को जारी करने के निर्देश किया था। पत्र में डा.इन्द्रमणि ने लिखा था कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में प्रचलित वाद के दृष्टिगत अधिवक्ता द्वारा दिये गये परामर्श का अनुपालन सुनिश्चित नहीं हो पा रहा है। जिसके फलस्वरुप भारी वित्तीय क्षति, अनियमितता होने की आशंका है।
पत्र में आगे लिखा गया है कि कार्मिकों के वेतन सीपीएफ के रुप में की जा रही कटौतियों व नियोक्ता अंशदान व उस पर अर्जित ब्याज को कार्मिकों के व्यक्तिगत खाते खुलवाकर धनराशि जमा कराने की कार्यवाही पूर्ण करायें। अन्यथा की स्थिति में आप स्वयं उत्तरदायी होंगे।
सीपीएफ को लेकर बीते चार माह से प्रबन्धक वित्त और स्मारक समिति के कर्मचारियों के बीच तनाव की स्थिति है। इसमें कानून का पक्ष भी रखकर आगे की वार्ता की जा रही है। स्मारक समिति के सदस्य सचिव और एलडीए के उपाध्यक्ष डा.इन्द्रमणि त्रिपाठी ने पत्र लिखकर कर्मचारियों के पक्ष में अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है। बावजूद अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
स्मारक समिति के कर्मचारियों का कहना है कि वे सभी प्रबन्धक वित्त देवेन्द्र मणि उपाध्याय से उम्मीद लगाये हुए हैं। कुछ माह से ऐसी स्थिति है कि जैसे सीपीएफ की धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जायेगी। भ्रष्टाचार की स्थिति के लिए प्रबन्धक वित्त की भूमिका ज्यादा घेरे में होगी। वहीं उनके सहायक भी उसी घेरे में शामिल दिख रहे हैं।
स्मारकों, संग्रहालयों, संस्थाओं, पार्कों, उपवनों का प्रबंधन, सुरक्षा व अनुरक्षण समिति के मुख्य प्रबंधक पवन कुमार गंगवार के सम्मुख भी सीपीएफ से जुड़ा प्रकरण आया है। जिसमें उन्होंने सख्त रुख अपनाते हुए प्रबन्धक वित्त को कर्मचारियों से जुड़े मामले में शीघ्रता करने के निर्देश दिये हैं।