बलिया, 18 नवम्बर । सूर्य षष्ठी यानी छठ पर्व पर्यावरण, ऊर्जा व जल संरक्षण का भी महापर्व है। यह कहना है पर्यावरणविद डा. गणेश पाठक का।
डा. गणेश कुमार पाठक ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में शनिवार को कहा कि छठ यानी सूर्य षष्ठी का व्रत अब एक अन्तर्राष्ट्रीय महापर्व का स्वरूप ग्रहण कर चुका है। यह व्रत खासतौर से महिलाएं रखती हैं। लेकिन मनौती करके पुरुष भी यह व्रत रखते हैं जो पवित्रता व स्वच्छता के साथ किया जाता है। चार दिन के इस व्रत की तैयारी कई दिन पहले से की जाती है। यही कारण है कि दीपावली समाप्त होते ही घर की साफ-सफाई प्रारम्भ हो जाती है। सूर्य षष्ठी का व्रत जल स्रोतों नदी, पोखर, तालाब व नहर के किनारे सायं काल व प्रातः काल में मनाया जाता है। व्रती महिलाएं जल स्रोतों में खड़ा होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं। इस तरह यह व्रत जल संरक्षण का प्रतीक है। सूर्य षष्ठी का व्रत इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह छठवीं तिथि को व्रत किया जाता है। मुख्य रूप से इस व्रत में सूर्य की पूजा की जाती है। शक्ति के प्रतीक के रूप में यह व्रत छठ माता के
व्रत के रूप में भी प्रसिद्ध है। सूर्य ऊर्जा का अजस्र स्रोत है। लिहाजा सूर्य षष्ठी का व्रत सूर्य की पूजा के रूपमें ऊर्जा संरक्षण का भी संदेश देता है। उन्होंने कहा कि सूर्यषष्ठी का व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से भी विशेष महत्वपूर्ण है। दीपावली के बाद से ही ठंड प्रारम्भ हो जाता है। इस व्रत में प्रायः ऐसे ही पकवान एवं फल चढ़ाए जाये हैं, जो जाड़े में स्वास्थ्य सम्वर्द्धन की दृष्टि से बेहद उपयोगी होते हैं। फलों में केला, संतरा, नारंगी, नारियल, सेब, अन्नानास, चीकू, मूली, मौसमी, गन्ना, आँवला, कदम्ब शरीफा व नीबू आदि गुणकारी फलों को चढ़ाया जाता है। यह स्वास्थ्य के लिए बेहद उपयोगी होता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य षष्ठी का व्रत स्वच्छता बनाए रखने का संदेश देकर प्रदूषण को मिटाने के साथ ही जल संरक्षण एवं सूर्य पूजा के रूप में ऊर्जा संरक्षण का भी संदेश देता है।