नई दिल्ली, 01 जनवरी । भारत आज नए वर्ष का स्वागत करने के साथ देश के पहले एक्सपोसेट (एक्स-रे पोलारिमीटर सेटेलाइट) मिशन का आगाज करने जा रहा है। साल 2024 के पहले दिन खगोल विज्ञान की दुनिया में भारत की यह बड़ी छलांग होगी। इससे पहले दुनिया साल 2023 में भारत की चंद्रयान-3 की सफलता का जश्न मना चुकी है।
एक्सपोसेट एक्स-रे स्रोत का पता लगाने और ब्लैक होल की रहस्यमयी दुनिया का अध्ययन करने में मदद करेगा। यह मिशन करीब पांच वर्ष का होगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर पूर्व में स्थित अंतरिक्ष केंद्र से आज (सोमवार) सुबह करीब नौ बजकर 10 मिनट पर एक्सपोसेट को लॉन्च करेगा।
ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी)-सी58 राकेट एक्सपोसेट और 10 अन्य उपग्रहों के साथ अपनी 60वीं उड़ान भरेगा और इन उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षाओं में स्थापित करेगा। प्रक्षेपण के लिए 25 घंटे की उल्टी गिनती रविवार को शुरू हो चुकी है। इसरो के वैज्ञानिकों ने रविवार को तिरुपति मंदिर में पूजा की। एक्सपोसेट का मकसद अंतरिक्ष में एक्स-रे स्रोतों के ध्रुवीकरण की जांच करना है। इसरो के अलावा अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने दिसंबर 2021 में सुपरनोवा विस्फोट के अवशेषों, ब्लैक होल से निकलने वाले कणों और अन्य खगोलीय घटनाओं का ऐसा ही अध्ययन किया था।
देश की की चार अंतरिक्ष स्टार्टअप कंपनियां पीएसएलवी-सी58 मिशन पर उपग्रहों को उनकी वांछित कक्षाओं में रखने वाली सूक्ष्म उपग्रह उप प्रणाली (माइक्रोसेटेलाइट सबसिस्टम), प्रक्षेपक (थ्रस्टर) या छोटे इंजन और उपग्रहों को विकिरण से बचाने वाली जैसी खूबियों को दर्शाने के लिए अपने अंतरिक्ष उपकरण (पेलोड) को शुरू करने की तैयारी में हैं। इन कंपनियों में हैदराबाद की ध्रुव स्पेस , बेंगलुरु की बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस, मुंबई की इंस्पेसिटी स्पेस लैब्स प्राइवेट लिमिटेड और हैदराबाद की टेकमीटूस्पेस शामिल है।
बताया गया है कि 44.4 मीटर लंबा पीएसएलवी राकेट उड़ान भरने के लगभग 21 मिनट बाद सबसे पहले प्रमुख उपग्रह को 650 किलोमीटर की निचली पृथ्वी कक्षा में तैनात करेगा। इसके बाद में विज्ञानी पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल माड्यूल-3 (पीओईएम-3) प्रयोग के लिए राकेट के चौथे चरण को फिर से शुरू करके उपग्रह को लगभग 350 किलोमीटर की निचली ऊंचाई पर लाएंगे।
यह राकेट पीएसएलवी-डीएल संस्करण है। इसका भार 260 टन है। उल्लेखनीय है कि अंतरिक्ष एजेंसी ने अप्रैल 2023 में पीएसएलवी-सी55 मिशन में पीओईएम-2 का उपयोग करके इसी तरह का सफल प्रयोग किया था। पीओईएम (पीएसएलवी कक्षीय प्रायोगिक माड्यूल) इसरो का प्रायोगिक मिशन है। इसका प्रयोग पीएसएलवी के चौथे चरण के दौरान प्लेटफार्म के रूप में किया जाता है। पीएसएलवी चार चरण का राकेट है। इसके पहले तीन चरण प्रयोग के बाद समुद्र में गिर जाते हैं और अंतिम चरण (पीएस4) उपग्रह को कक्षा में प्रक्षेपित करने के बाद अंतरिक्ष में कचरा (कबाड़) बन जाता है।