मोदी के पहुंचते ही अडानी को राहत : ट्रंप ने विदेशी रिश्वतखोरी कानून के क्रियान्वयन पर लगाई रोक

मोदी के पहुंचते ही अडानी को राहत : ट्रंप ने विदेशी रिश्वतखोरी कानून के क्रियान्वयन पर लगाई रोक

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं जिसमें न्याय मंत्रालय को लगभग आधी सदी पुराने विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम पर रोकने लगाने और उसकी समीक्षा करने का निर्देश दिया गया है। अडानी समूह के खिलाफ रिश्वतखोरी की जांच इसी कानून के तहत शुरू की गई थी। ट्रंप ने यह कदम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से ठीक पहले उठाया है।

ट्रंप ने 1977 के विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम (एफसीपीए) के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जो अमेरिकी कंपनियों और विदेशी कंपनियों को व्यापार करने के लिए विदेशी सरकारों के अधिकारियों को रिश्वत देने से रोकता है। ट्रंप ने अमेरिकी अटॉर्नी जनरल पामेला बॉन्डी को एफसीपीए के प्रवर्तन को रोकने का निर्देश दिया, जिसके तहत अमेरिकी न्याय मंत्रालय कुछ चर्चित मामलों की जांच कर रहा है। इसके तहत ही भारतीय उद्योगपति और अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर के खिलाफ अभियोग चलाया गया।

पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन नीत सरकार के अधीन न्याय मंत्रालय ने पिछले साल अडानी पर सौर ऊर्जा ठेकों के लिए अनुकूल शर्तों के बदले भारतीय अधिकारियों को 25 करोड़ अमेरिकी डॉलर (करीब 2,100 करोड़ रुपये) से अधिक की रिश्वत देने की योजना का कथित रूप से हिस्सा होने का आरोप लगाया था। अडानी समूह ने हालांकि सभी आरोपों को खारिज किया है। अभियोजकों ने पिछले वर्ष एफसीपीए का हवाला देते हुए आरोप लगाया था कि यह बात उन अमेरिकी बैंकों और निवेशकों से छिपाई गई, जिनसे अडानी समूह ने इस परियोजना के लिए अरबों डॉलर जुटाए थे।

एफसीपीए विदेशी भ्रष्टाचार के आरोपों पर कार्रवाई करने की अनुमति देता है, जबकि उनका अमेरिकी निवेशकों या बाजारों से कुछ संबंध हो। इस कानून पर ट्रंप का रोक लगाना और समीक्षा का आदेश देना अडानी समूह के लिए राहत के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन यह देखना बाकी है कि छह महीने की समीक्षा अवधि के बाद न्याय मंत्रालय क्या रुख अपनाता है।

ट्रंप ने जिस आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं उसमें अटॉर्नी जनरल को 180 दिन में एफसीपीए के अंतर्गत जांच और प्रवर्तन कार्रवाइयों को नियंत्रित करने वाले दिशानिर्देशों तथा नीतियों की समीक्षा करने को कहा गया है। इसमें कहा गया है, समीक्षा अवधि के दौरान अटॉर्नी जनरल किसी भी नई एफसीपीए जांच या प्रवर्तन कार्रवाई की शुरुआत नहीं करेंगे, जब तक कि अटॉर्नी जनरल यह निर्धारित नहीं कर लेते कि कोई व्यक्तिगत अपवाद बनाया जाना चाहिए।

साथ ही इसमें सभी मौजूदा एफसीपीए जांच या प्रवर्तन कार्रवाइयों की विस्तार से समीक्षा करने और एफसीपीए प्रवर्तन पर उचित सीमाएं बहाल करने तथा राष्ट्रपति की विदेश नीति के विशेषाधिकारों को संरक्षित करने के लिए ऐसे मामलों के संबंध में उचित कार्रवाई करने की बात कही गई है। संशोधित दिशानिर्देशों या नीतियों के जारी होने के बाद शुरू की गई या जारी रखी गई एफसीपीए जांच और प्रवर्तन कार्रवाइयां ऐसे दिशानिर्देशों या नीतियों के अधीन आएंगी और उन्हें विशेष रूप से अटॉर्नी जनरल द्वारा अधिकृत किया जाना चाहिए।

इससे पहले, अमेरिका के छह सांसदों ने नवनियुक्त अटॉर्नी जनरल को अमेरिकी न्याय मंत्रालय (डीओजे) द्वारा लिए गए संदिग्ध फैसलों के खिलाफ पत्र लिखा था। इनमें कथित रिश्वत घोटाले में उद्योगपति गौतम अडानी के समूह के खिलाफ अभियोग का मामला भी शामिल है। सांसदों ने पत्र में आशंका जताई थी कि इससे करीबी सहयोगी भारत के साथ संबंध खतरे में पड़ सकता है। लांस गुडेन, पैट फॉलन, माइक हरिडोपोलोस, ब्रैंडन गिल, विलियम आर. टिम्मोंस और ब्रायन बेबिन ने 10 फरवरी को अमेरिका की अटॉर्नी जनरल पामेला बॉन्डी को पत्र लिखकर बाइडन के प्रशासन के तहत डीओजे द्वारा लिए गए कुछ कथित संदिग्ध निर्णयों की ओर ध्यान आकर्षित किया था।