बांग्लादेश में चल रहा 103 साल पुराना संस्कृत विद्यालय, मुस्लिम छात्र भी करते मंत्रोच्चार

बांग्लादेश में चल रहा 103 साल पुराना संस्कृत विद्यालय, मुस्लिम छात्र भी करते मंत्रोच्चार

ढाका, 27 मई । बांग्लादेश के सिलहट जिले में करीब 103 साल पुराना संस्कृत का विद्यालय है, जो सनातन धर्मावलम्बियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस विद्यालय में हिन्दुओं के अलावा मुस्लिम छात्र भी देववाणी का अध्ययन कर वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हैं।

विद्यालय के प्रधानाचार्य डा. दिलीप कुमार दास चौधरी ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि श्रीहट्ट संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना ब्रिटिश शासन के दौरान तत्कालीन भारत सरकार के असम प्रदेश अन्तर्गत वर्ष 1920 में हुई थी। महाविद्यालय की स्थापना के लिए तत्कालीन जमींदार अजय कृष्ण राय ने 18 बीघे जमीन दान में दी थी।

डा. चौधरी ने बताया कि भारत पाकिस्तान बंटवारे से पहले बांग्लादेश का सिलहट जिला असम प्रान्त का हिस्सा था। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान बनने के बाद यह विद्यालय बंद हो गया था, लेकिन कुछ समय बाद स्थानीय लोगों के प्रयास से विद्यालय फिर से संचालित होने लगा। प्रधानाचार्य के अनुसार वर्ष 1971 में जब बांग्लादेश एक स्वतंत्र व संप्रभु राष्ट्र बना तो श्रीहट्ट संस्कृत महाविद्यालय को सरकार के शिक्षा विभाग से संबद्धता मिल गई। पूर्व में यह भारत सरकार से मान्यता प्राप्त विद्यालय था।

श्रीहट्ट संस्कृत महाविद्यालय में पढ़ते हैं 400 हिन्दू व मुस्लिम छात्र

एक सवाल के जवाब में प्रधानाचार्य डा. चौधरी ने बताया कि वर्तमान में श्रीहट्ट संस्कृत महाविद्यालय में 400 हिन्दू और मुस्लिम छात्र पढते हैं। यहां संस्कृत, नव्य व्याकरण, षडदर्शन, आयुर्वेद आदि अनेक विषय पढ़ाये जाते हैं। उन्होंने बताया कि विद्यालय को बांग्लादेश सरकार से मान्यता जरुर मिली है, लेकिन सरकार की तरफ से प्राध्यापकों के वेतन आदि हेतु कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती है।

यह पूछने पर कि विद्यालय का खर्च कैसे चलता है, डा. चौधरी ने बताया कि श्रीहट्ट संस्कृत महाविद्यालय के नाम बांग्लादेश की करेंसी में एक करोड़ रुपये की धनराशि काफी समय से बैंक में जमा है। इसके ब्याज और छात्रों से शुल्क के रुप में कुछ धनराशि मिल जाती है, उसी से विद्यालय का खर्च येन केन प्रकारेण चल जाता है। उन्होंने बताया कि विद्यालय के प्राध्यापक बगैर वेतन के ही विद्या दान करते हैं। प्रधानाचार्य के अनुसार विद्यालय के आयुर्वेद विभाग में सुश्रुत चिकित्सा, चरक संहिता और भृगु संहिता जैसे प्राचीन आयुर्वेद के ग्रंथों के अलावा आधुनिक शरीर विज्ञान के विषय भी पढ़ाए जाते हैं।

सिलहट रही है प्रसिद्ध संतों और विद्वानों की धरती

प्रधानाचार्य डा. चौधरी ने बताया कि श्रीहट्ट संस्कृत महाविद्यालय से पढ़कर निकले हुए छात्र भारत सहित दुनिया के कई देशों में अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने बताया कि सिलहट का प्राचीन नाम श्रीहट्ट था। चैतन्य महाप्रभु और सुभाष पंडित जैसे तमाम संतों और विद्वानों ने सिलहट में ही जन्म लिया था। उन्होंने बताया कि रविन्द्र नाथ ठाकुर ने सिलहट की धरती को श्री भूमि की संज्ञा दी थी।

बांग्लादेश यात्रा के दौरान शंकराचार्य भी पहुंचे श्रीहट्ट संस्कृत विद्यालय

गोर्वधन पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अधोक्षजानंद देव तीर्थ इस समय बांग्लादेश स्थित शक्ति पीठों की यात्रा पर हैं। सिलहट स्थित श्री शैल महालक्ष्मी शक्ति पीठ में देवी का दर्शन और पूजन करने पहुंचे शंकराचार्य भी श्रीहट्ट संस्कृत विद्यालय गए। विद्यालय के गौरवशाली इतिहास और वर्तमान स्थिति जानने के बाद जगद्गुरु ने कहा कि बांग्लादेश में गुरुकुलों के विकास हेतु वह भारत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखेंगे। इस दौरान विद्यालय के प्रधानाचार्य डा. दिलीप कुमार दास चौधरी के अलावा संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो. राकेश शर्मा, प्रो. विद्युत ज्योति चक्रवर्ती, डा. उत्तम कुमार सरकार और प्रो. अरुण चक्रवर्ती समेत विद्यालय के अन्य अध्यापकों और छात्रों ने जगद्गुरु देवतीर्थ का भव्य स्वागत किया।